इंतकाम की विडम्बना
रोको रोको वह चिल्लाई,
शांत शाम में तेज़ी आई,
दौड़ पड़ा था एक आदमी,
उसके पीछे भीड़ आ जमी,
पहरेदार ने उसको रोका,
किसी बुज़ुर्ग ने उसको टोका,
ख़त्म तमाशा मै चल पड़ी,
अपने काम की थी हड़बड़ी;
लौटकर सुना जो किस्सा,
मर गया दिल का एक हिस्सा!
वो पहरेदार से पूछ रही थीं,
चोर के शक में डूब रहीं थीं,
वह टाल रहा था सवाल,
पर महिलायों की जिद्द थी बवाल,
झल्लाकर उसने बोल दिया,
दर्द को लफ़्ज़ों में तोल दिया,
चार महीने पहले की थी शादी,
आज बहन की चिता जला दी;
पोस्ट-मोर्टेम ने हत्या जतलाई,
बहनोई को मारने चला भाई!
शायद यह माँ का साथ था,
वह कुछ समझा रही थी उसको,
शायद पिला रही थी दुःख को,
मायूस चेहरे पे साफ़ लिखा था,
उस अधमरे शरीर से साफ़ दिखा था;
मै लाचार हूँ, मै बेकार हूँ,
बहन की मौत का मैं ज़िम्मेदार हूँ!
क्या बीत रही होगी उस माँ पर,
तोड़ गया होगा जिसे जुर्म बर्बर,
फिर भी कैसे उसमे हिम्मत है,
क्यों उसे इन्तकाम अ-सम्मत है,
शायद वधु-प्रपुत्र की चिंता होगी,
शायद व्यवस्था से अवगत होगी,
कि असली मुज़रिम छूट जायेंगे,
रोको रोको वह चिल्लाई,
शांत शाम में तेज़ी आई,
दौड़ पड़ा था एक आदमी,
उसके पीछे भीड़ आ जमी,
पहरेदार ने उसको रोका,
किसी बुज़ुर्ग ने उसको टोका,
ख़त्म तमाशा मै चल पड़ी,
अपने काम की थी हड़बड़ी;
लौटकर सुना जो किस्सा,
मर गया दिल का एक हिस्सा!
वो पहरेदार से पूछ रही थीं,
चोर के शक में डूब रहीं थीं,
वह टाल रहा था सवाल,
पर महिलायों की जिद्द थी बवाल,
झल्लाकर उसने बोल दिया,
दर्द को लफ़्ज़ों में तोल दिया,
चार महीने पहले की थी शादी,
आज बहन की चिता जला दी;
पोस्ट-मोर्टेम ने हत्या जतलाई,
बहनोई को मारने चला भाई!
जो नज़र गयी भीड़ पर, देखा,
वह भाई पड़ा था सड़क पर,
बुज़ुर्ग का उसके सर पे हाथ था,शायद यह माँ का साथ था,
वह कुछ समझा रही थी उसको,
शायद पिला रही थी दुःख को,
मायूस चेहरे पे साफ़ लिखा था,
उस अधमरे शरीर से साफ़ दिखा था;
मै लाचार हूँ, मै बेकार हूँ,
बहन की मौत का मैं ज़िम्मेदार हूँ!
क्या बीत रही होगी उस माँ पर,
तोड़ गया होगा जिसे जुर्म बर्बर,
फिर भी कैसे उसमे हिम्मत है,
क्यों उसे इन्तकाम अ-सम्मत है,
शायद वधु-प्रपुत्र की चिंता होगी,
शायद व्यवस्था से अवगत होगी,
कि असली मुज़रिम छूट जायेंगे,
औ उसके बेटे को जेल की राह दिखायेंगे;
एक बेटी के ग़म में वह जी लेगी, मासूम प्रपुत्र की आत्मा तो नहीं जलेगी!