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Monday, December 26, 2011

Bhagirathi Se Jaage Bhag

भागीरथी से जागे भाग

हर की पौड़ी की ओर बढ़ते हुए दस से अधिक लोगों नि हमे रोका, दस रूपये का आरती का दिया खरीदने के अनुरोध करते हुए| इन लोगों ने प्रदेश की सबसे मधुर और विशुद्ध भाषा में गंगा मैया को दिया भेंट करने के फायदों का बयान किया| आखिरकार चिड कर मैंने उनके ही अंदाज़ में कह डाला, "इस दिये से तो गंगा प्रदूषित होती है"| अगले दस कदम चलते हुए मुझ पर तानों की बौछार हो गयी, "अरे इन मैडम पर वक़्त बर्बाद करने का फायदा नहीं, ये तो कह रही हैं की इससे गंगा दूषित होती है, दूषित, ओहो, इनको ऐसी हिंदी भी आती है, बताओ ये जब गंगा स्नान करेंगी तो गंगा दूषित होगी ही नहीं"|  समझ नहीं आ रहा था  की क्या सुनना बेहतर था, ताने या अनुरोध| 

हर की पौड़ी पर दो महिलाएं पीछे पड़ गयीं, "बेटी, यह लो, गंगा मैया को दूध चढ़ा दो, तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी"| देखा, उनके पास करीबन दस लीटर दूध-सा दिखने वाला तरल पदार्थ था, जिसमे से वो एक छोटा से गिलास भर कर दे रहीं थीं, मात्र पचास ग्राम मात्र पांच रूपये में| वो उन सब श्रध्धालुयों का भी हिसाब रख रही थीं जिनने यह भेंट स्वीकार की थी, "उन लोगों से पंद्रह लेने हैं,उधर वालों से बीस और इनसे दस"| हमने सोचा, "खैर बड़े मुनाफ़े का सौदा है यह"|  

मनसा देवी से लौटकर आये तो दोपहर हो चली थी| देखा हर की पौड़ी के पास एक महाशय पुकार रहे थे, "दस रूपये देते जाएँ, गरीबों के खाने के लिए, किसी गरीब का फायदा हो जायेगा, और हाँ, सौ रूपये में ग्यारह लोगों के लिए अन्न दान भी कर सकते हो"| प्रस्ताव काबिले तारीफ़ था| देखा वाकई ही लोगों की लम्बी कतार थी, भोजन पाने के लिए| मन पसीजने ही वाला था की दो महिलायों पर नज़र पड़ी| ये तो वही महिलाएं निकलीं जो पांच-पांच रूपये में पचास ग्राम दूध बाँट रही थीं| किसी ने कहा, "आखिर इनके लंच का भी तो वक़्त हो चला है"| खैर इस रहस्योद्घाटन ने हमे यहाँ चुना लगने से तो बचा लिया|

थोड़ी दूर आगे चलने पर एक और महिला मिली, गोद में दो छोटे छोटे अत्यंत भूखे दिख रहे बच्चे लिए| वह पांच मिनट तक कातर आवाज़ में दो रोटी मांगती हमारे पीछे-पीछे चलती रही| एक दूकान सामने देख कर मैंने सोचा चलो इसे दो रोटी ही दिला दूं| दूकान पहुँचते ही महिला तन गयी और झट से आर्डर कर डाला, "छह रोटी और एक दाल फ्राई पैक कर दो"| मुझे खटका हुआ| इतनी ही देर में उसके साथ और दो बच्चे आ खड़े हुए| मैंने कहा, "चलो यह छह रोटी आप सब लोग खा लेना"| महिला गरजी, "मैं इनको नहीं जानती, इनको तुम अलग से दिलाना"| परिस्थिति देख होटल वाला बोला, "आप इनको पराठे दिला दो, आपको सस्ते पड़ेंगे, खाने के लिए अचार और दही भी साथ मिल जायेगा"| महिला ने झट टोका, "दीदी, पराठे तो बहुत ऑयली हैं, मैं इतना तेल वाला खाना नहीं खाती"| सुन मेरे तन बदन में आग लग गयी, खून खौल उठा, मन किया इस महारानी को एक चांटा रसीद दूं और पूछूं, "क्या मैं तुम्हे पागल दिखती हूँ?" पर अफ़सोस, मैं ऐसा कर नहीं पायी| होटल वाले को कहा, "पार्सल करने की कोई ज़रुरत नहीं"| सामने परसाया और अंगारे बनी आँखों से घूरते हुए उन तीन महार्थियों को खाने को मजबूर किया| मुझे डर था कहीं वो उस खाने को वापिस बेच पैसे न कमा ले! और वो दो आगंतुक बच्चे भी उसे 'मम्मी' कह संबोधित करने लगे| 

आगे चले, गंगाजल लेने के लिए खाली बोतल खरीदी, पूरे बीस रुपयों में| इससे तो सस्ती मिनेरल-वॉटर भरी बोतल मिल जाती है| गंगाजल लेते हुए देखा, एक महापुरुष आईना लिए पानी में सिक्के खोजता चला जा रहा है| दूसरी ओर कुछ और महापुरुष जाल में फंसाकर बहते दिए निकाल रहे हैं और सुखा रहे हैं, कुछ लोगों के बहते और बहाए कपड़े निकालने में व्यस्त हैं| 

इन्हीं नज़ारों  का लुत्फ़ उठाते हम ऋषिकेश को निकल पड़े| शाम को लौटे, आरती देखी, हर कि पौड़ी पर कुछ वक़्त बिताया और पास में खाना खाया| आठ बजे लौटने को हुए, हर कि पौड़ी को जाने वाले पुल पर कुछ याचकों ने गुहार लगायी, "अरे गंगा मैया के नाम कुछ तो देते जाओ, कम से कम बोनी तो कराते जाओ"| बोनी, रात के आठ बजे! किसी ने कहा, ये लोग शायद 'नाईट-शिफ्ट' में आये होंगे|

हरिद्वार से लौट आने पर यह याद आया, वहां रहते हरि की याद तो आ ही नहीं पायी| आखिर हरि के बन्दों ने इतना व्यस्त जो रखा! बाकी यादें तो धूमिल होती जा रही हैं पर उस 'दो रोटी' मांगने वाली को नहीं भुला पायी हूँ| अब भी यही सोचती हूँ की क्या उसका पराठे से इनकार करना इतना बड़ा गुन्हा था, क्या दाल-फ्राई मांगना इतना बड़ा जुर्म था| कभी तो ख्याल आता है की हाँ था, कभी महसूस होता है कि क्या एक इतने तुच्छ परोपकार ने मुझे इतना घमंडी बना दिया और उस बेचारी की पसंद का निर्णय करने का हक दे दिया?



Wednesday, December 7, 2011

आँखों में नींदें लिए

It can't get harder to get up for office on a winter morn with melodious songs playing in the background. This is how Shaan's lines get garbled in the haziness of sleepiness!

आँखों में नींदें लिए

आँखों में नींदें लिए, 
बिस्तर से उठ तो दिए,
जाने ठंडी में दुबके अब जायेंगे कहाँ|

Office से calls आयें,
मन में बहाने लायें,
मन में ही रह जाये बहानों का जहाँ,
Boss नया है, अनजाना है teammate,
पहुंचेंगे शायद फिर हम late!

Boring office, hectic project,
जाएँ वहां, फिर क्यों झटपट! 

Client के नज़ारे देखे, 
Boss के इशारे देखे,
मन में फिर भी movie का ख्वाब है जवाँ|
कितने तो weekend आये,
Office में spend कराये,
आँखों में झलके holiday की लालसा,
Picnic के plan से झूमे, मन करे salsa,
Project का जाने होगा क्या!
Boring office, hectic project,
जाएँ वहां, फिर क्यों झटपट!


मैं पागल तो नहीं

Sibal, the only member of 'species with two Y chromosomes' seems to give 'Mouth-Loose' Diggi a serious competition for the award of the 'Biggest fool in the history of India' and he even hums these lines to support his claim...