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Monday, May 17, 2010

Naam Ka Gulaam

पहला दृश्य
आस्था चैनल पर प्रसारित सनसनी-खेज़ कार्यकर्म मंथन स्वामीजी के प्राण सुखा देता है | घोर विपदा में घिरे स्वामीजी संकट-मोचन को गुहार  लगाते हैं | संकट-मोचन उन्हें समझाते हैं कि भारत परम्पराओं और संस्कारों की भूमि है | सांस्कृतिक गौरव के हित में अत्यंत अधर्म सर्वोपरि धर्म बन जाता है | उन्हें निष्कलंक भाव से मूल्यों का आह्वान करना चाहिए |

दूसरा दृश्य
"टीवी और रेडियो सेट पर मुझे देख-सुन रहे देश-वासी बहिनों, माताओं, बेटीओं एवम बंधुयों,
मैं, उस परम-पिता का तुच्छ सेवक, सदैव आप लोगों की उन्नति एवं ख़ुशी की प्रार्थना करता हूँ; आप सभी की असीम कृपा का पात्र, आप लोगों को कृतज्ञ नमन करता हूँ|
 
पत्रकार देवियों एवं सज्जनों,
मैं आप लोगों का तहे-दिल से शुक्र-गुज़ार हूँ कि पिछले हफ्ते की निकृष्ट सूचनाओं के बावज़ूद आप लोगों ने मेरे प्रेस समेल्लन के आमंत्रण को स्वीकार किया और मुझ दीन को अपने प्रिय देश-वासियों के समक्ष अपना पक्ष रखने का अवसर दिया है| आप सभी से सविनय आग्रह है कि इसके पूर्व कि मैं कुछ कहूं, आप लोग मेरे कुछ प्रशनों का उत्तर दे मुझे कृतार्थ करें| क्या आपको यह आग्रह स्वीकार्य है?"
"हाँ, हमे मंज़ूर है|"
"जी शुक्रिया! आप धन्य हैं!"

प्रo (अति विनम्र) :  हे बंधू, जी हाँ, नवजागरण से आये मेरे प्रिय बंधुवर, आपका नाम क्या है?
उo (तटस्थ) : चिराग|
प्रo: चिराग जी, आपका नामकरण किसने किया?
उo: मेरे डैडी ने|
प्रo: इस नामकरण का कोई प्रयोजन?
उo (गर्वित) : मेरे डैडी चाहते थे कि मैं पढ़-लिख कर चारों तरफ उजाला करूं|
(पत्रकार समूह खिलखिला उठता है)
प्रo (प्रसन्न) : अति उच्च विचार! चिराग जी, क्या आपने उनके स्वपन को साकार करने का कोई प्रयास किया है?
उo: जी हाँ, मैं इसी लिए जर्नलिस्ट बना!

प्रo: अतियोत्तम! क्या आप लोग सभी चिराग जी की भावनाओं से सहमती रखते हैं कि इस बदलते भारतीय परिवेश में भी माता-पिता की इच्छा सर्वोपरि एवं सम्माननीय है?
कुछ उo: हाँ|
कुछ उo (उग्र) : नहीं|

प्रo (शांत) : मान लीजिये, एक परिवार में दो पुत्र हैं,  राम और शाम|  एक ओर राम अपने परिवार की मर्यादा का पालन करता है और अपने पिता को पूज्य मानता है, दूसरी ओर शाम अपने बूढ़े पिता को घर से निकाल देता है| जिनका उत्तर पिछले प्रशन के लिए नकारात्मक था, मैं उन सज्जनों से पूछना चाहता हूँ कि आप  इन दोनों पुत्रों में से किसकी वकालत करेंगे?
उo: राम की|

प्रo: शुक्रिया, आप धन्य हैं| क्या आप मेरा नाम जानते हैं?
उo (उपहासित) :  ओब्विअसली, आप हैं आचार्य कामधेनु कल्पतरु चिरानंद संत दास!

प्रo (कृतकृत्य) : ये सम्मान तो आप लोगों की मेरे प्रति वृहत हृदय दृष्टि है, मेरे पूज्य पिताश्री ने तो मुझे मात्र चिरानंद दास की संज्ञा दी है| चिर शब्द की परिभाषा दें!
उo: कपड़े, क्लोद्स|
प्रo: आपकी परिभाषा सही है, यह आप कैसे कह सकते हैं?
उo (दम्भी ) : कल ही मैंने द्रौपदी समान आपके चीरहरण का एपिसोड अपने चैनल पर ऐंकर किया था|
(ठहाकों और तालियों की गडगडाहट से हॉल गूँज उठता है)

प्रo (प्रशांत): बालक, वस्त्र का पर्याय चीर है, चिर नहीं| क्या कोई और सज्जन चिर शब्द के अर्थ को प्रकाशित करना चाहेंगे?
उo: चिर मतलब लौंग, ऑलवेज़, जैसे चिरायु|
प्रo (प्रसन्न) : अति सुन्दर, जैसे चिरायु, चिराग इत्यादि| क्या आप दास शब्द को परिभाषित कर सकते हैं?
उo: गुलाम, सेवक!

प्रo (हर्षित) : धन्यवाद! आपके सहयोग से मैं अपने नाम की परिभाषा दे सकता हूँ| मेरे नाम का अर्थ है एक ऐसा सेवक जो सदैव आनंदित करे| मेरे प्रत्येक कार्य में यही भाव समाहित हैं| अपने नाम, पिताश्री और भक्तों का परम सेवक, मैं उनकी प्रत्येक इच्छा पूर्ण कर उन्हें आनंदित करना चाहता हूँ, चाहे किसी चिराग की भांति मुझे खुद क्यों न जलना पड़े| मुझे आप लोगों से सिर्फ यही कहना था| अब आप चाहें तो मुझे सूली पर चढ़ा दें, आपके इस तुच्छ दास को जनाधिकार सम्मत है|

तीसरा दृश्य
सभी श्रोता अत्यंत भावुक हो उठते हैं, सभी अपनी अवहेलना पर लज्जित हैं, कुछ अपने पिता की, कुछ आचार्य जी  की | सभा में उपस्थित चेले चारों दिशाओं को महान आचार्य कामधेनु कल्पतरु चिरानंद संत दास की जयजयकार  से गूंजा देते हैं  | इसी बीच कुछ दूरदर्शी  आचार्यजी की चरण धूलि के लिए अग्रसर होतें हैं |शेष अज्ञानी उनके पीछे दौड़ पड़ते हैं और भगदड़ मच जाती है | सम्पूर्ण देशवासी भावना की इस गंगा में स्नान करने लगते हैं | भगदड़ में मारे गए लोगों को आचार्य के चरणों में मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है  | आज स्तिथि यह है कि एक ओर हर माह अनावृत होते  नए आश्रम भी आचार्य के शिष्यों के उफनते सागर को समाहित नहीं कर पाते |  दूसरी ओर दक्षिणा-पूरित आचार्य कोष  द्रौपदी के अक्षय पात्र को मात देते हुए आचार्य और उनके कुल कि मर्यादा को कायम रखता है |

4 comments:

  1. Deepa, this is hilarious .. very well written :-)

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  2. thanks a lot dear :)
    tum hi ye Hindi padh sakti ho, kafi saare log to poora padhe bhi nahi Hindi ke chakkar me :)

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  3. Deepa i read it thrice and i still could not match up with your thoughts that you have put in.. very well written a very good satire..

    I'll not categorize it as hilarious cos its more than just being hilarious..

    very good work..becoming your fan now :-)

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  4. Hi Rajneesh, thank you very much :-)

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