दिनकर जी के दिनों में तो नन्हा चाँद माँ की परेशानी समझ झिंगोला सिलाये बिना रह गया था। पर आज का नन्हा चाँद माँ से कह रहा है...
चाँद का ज़वाब
लाड़-प्यार से पला हूँ तुम्हारे,
माँ मुझको अब न बहला रे;चिढ़ाएं न मुझको नन्हें तारे,
मेरे कर दे पूरे नखरे न्यारे!
दिला दे मुझको पंद्रह-सोलाह,
हर साइज़ का एक झिंगोला;
आइस-क्रीम पर मन है डोला,
खिलौनों से भर दे मेरा झोला!
भर दे मेरे मोबाइल का बिल,
कॉल मिला लूं जब चाहे दिल;
औ दिला दे इक बाई-साइकिल,
फिर न बोलूं सफ़र है मुश्किल!
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