वसंत रात्रि
इस वसंत न खिले हैं गुलमोहर न अमलतास,
पर अम्बर पर हैं मेहरबान कुछ मेहमां ख़ास,
रात का आँचल सजाये अदृष्ट कोहिनूर सा ज्यूपिटर,
गुलमोहर की लालिमा लिए लाल मार्ज़ भी दृष्टिगोचर,
सैटर्न ने जड़ा है रात्रि ताज में इक नया नगीना,
उगता अर्ध चन्द्र बना गया अमलतास स्वर्णिमा,
सिरीअस चमके ऐसे लगे कि जैसे कोई नव-गृह न कि तारिका,
ओरायन, बिग डिप्पर, कैनिस मेजर, टौरस से शोभित रात्रि वाटिका।
इस वसंत न खिले हैं गुलमोहर न अमलतास,
पर अम्बर पर हैं मेहरबान कुछ मेहमां ख़ास,
रात का आँचल सजाये अदृष्ट कोहिनूर सा ज्यूपिटर,
गुलमोहर की लालिमा लिए लाल मार्ज़ भी दृष्टिगोचर,
सैटर्न ने जड़ा है रात्रि ताज में इक नया नगीना,
उगता अर्ध चन्द्र बना गया अमलतास स्वर्णिमा,
सिरीअस चमके ऐसे लगे कि जैसे कोई नव-गृह न कि तारिका,
ओरायन, बिग डिप्पर, कैनिस मेजर, टौरस से शोभित रात्रि वाटिका।
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