Search This Blog

Saturday, August 20, 2011

Anna Ki Chetavani

Inspired by an apt observation (from Dinkar's epic conversation) on government's initial reaction to Anna's fast...

अन्ना की चेतावनी 

वर्षों तक प्रदेश में घूम घूम,  सरकारी विघ्न को चूम चूम,
सह चोरी महंगाई भ्रष्टाचार, अन्ना को यह आया विचार,
बेईमान न हर दिन चलता है, देखें क्या हल निकलता है;
उन्नति की राह दिखाने को, सरकार सुमार्ग पर लाने को,
मनमोहन  को समझाने को, भीषण अपकर्ष बचाने को,
अन्ना जी राजधानी आए, जनता का संदेशा लाये|
हो न्याय अगर तो लोकपाल दो, पर इसमें भी यदि बवाल हो,
तो कर दो केवल पाँच परिवर्तन, पाओ अपने बिल का समर्थन,
हम वहीँ संतुष्ट हो जायेंगे, सरकार से विरोध न जताएंगे;
मनमोहन वह भी दे ना सका, आशीष देश की न ले सका,
उलटे अन्ना को बाँधने चला, जो था असाध्य साधने चला,
जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है|
अन्ना ने जेल स्वीकार करी, नव क्रांति की हुंकार भरी,
डगमग डगमग दिग्गज डोले, अन्ना कुपित हो कर बोले,
अन्दर रख कर साध मुझे , हां हां मनमोहन बांध मुझे;
ये देख गगन मुझमे लय है, ये देख पवन मुझमे लय है,
मुझमे विलीन भारतीयता सकल, मुझमे लय तरुण सकल,
ईमान फूलता है मुझमे, बलिदान फूलता है मुझमे|
त्रस्त नागरिक की चाल देख, अपनी सरकार का काल देख,
हित वचन नहीं तुने माना, जनता का मूल्य न पहचाना,
तो ले मैं भी अब जाता हूँ, अंतिम संकल्प सुनाता हूँ;
याचना नहीं अब प्रदर्शन होगा, जीवन भू को समर्पण होगा,
समक्ष वतन एकीकृत होगा, न और सहय भ्रष्टाचार होगा,
भ्रष्ट राजनीतिज्ञ सर्वनाश देखेगा, जनता का जीवन सुधरेगा|
लोग कर का हिसाब मांगेगे, पारदर्शकता, स्फूर्ति मांगेगे, 
सब पर जांच का शिकंजा होगा, मंत्री विशेष न उन्मुक्त होगा;
मनमोहन प्रदर्शन ऐसा होगा, फिर कभी नहीं जैसा होगा,
आखिर तू भूशायी होगा, भ्रष्टाचार का अनुयायी होगा;
थी सभा सन्न, सब नेता डरे, चुप थे या थे नीचे गिरे,
केवल दो नर न अघाते थे, परदेस का जो सुख पाते थे|

2 comments: