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Friday, October 21, 2011

Use Intezaar Hai

Did not know that the concept of Nautanki existed outside the realms of Hindi films also till happened to witness one going on in the grand garden of a so-called posh hotel!

उसे इंतज़ार है

दिल्ली की कोलाहल से दूर, बसा है संगम शहर मशहूर!
ढलते पहर का था कसूर, जो देखा लिया ग़मगीन दस्तूर!
शीला-मुन्नी पात्र यथार्थ है, कल्पना  नहीं, मरीचिका नहीं!
नचायें उसे लोभ-स्वार्थ हैं, जीवन के उसकी दिशा नहीं!

सजावट आलिशान,  इंतज़ार में आसथान,
दर्द भरी मुस्कान, फिर भी ठुमके में जान,
उन्मत्त हैवान, नर्तकी के गुण-रूप से हैरान,
उसके नयन बेज़ुबान, फिर भी मन परेशान!

कौतुक-वश उसे बुलवाया, हुनर सहराया,
उसके हालात की दास्तां का सवाल दोहराया;
'तारीफ न करना मेरी, तारीफ तो चुभता काँटा है,
जिसकी नोक पे, मुझे दुनिया ने बाँटा है!

माँ से छुप-छुप कर दिन रात रियाज़ किया,
जूनून के कौंध में अंध, मेनका का ताज़ लिया,
हाय मैं तो जीत कर भी हार गयी,
पल भर में स्वर्ग से धरा पर आ गयी!

उन मदहोश आँखों की ललक भरी ज्वाला से मेरी रूह दहकती है!
तुम्हारी आँखों के तरल आईने में मेरे दर्द की आत्मा झलकती है!
क्या सोच तुमसे मिलने आ गयी, अजब आत्मीयता पा गयी!
माफ़ करना तुम्हे बहिन पुकार गयी, पत्थर का दिल हार गयी! 

जीत कर हारने वाली को जानवर कहते हैं,
मुझे शीला-मुन्नी, उसे खच्चर कहते हैं,
वहां गले में बंधे घंटी, यहाँ पैरों में घुँघरू,
वहां बदन पे बोझ, यहाँ भी यही आबरू!

जो सच इस दलदल से निकालने की नीयत हो, 
तो पगली, मुझे अपनी मेहरी की ही हैसीयत दो,
या फिर संग मेरे इस नरक की अग्न में जलो,
वरना तो इसी पल अपनी दुनिया में लौट चलो!'

विकल्पों से सिहर गया मेरा अंतर-मन,
पीछे हटने लगे कदम मेरे अन-मन,
वो मासूम दिखी पल-भर को चालबाज़,
बस गूंजते रह गए उसके अलफ़ाज़!

'यों नहीं कि अश्क को छलकना नहीं आता, कसूर बेदर्द दारु और हिजाब का है!
यों नहीं कि थिरकते पैरों को थकना नहीं आता, सवाल उड़ते पैसों के हिसाब का है!
यों नहीं कि उम्मीद को तैरना नहीं आता, क्या करिये जो दरिया तेज़ाब का है!
यों नहीं कि जुबां को और फिसलना नहीं आता, इंतेज़ार अब आपके ज़वाब का है!'

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