(लोकप्रिय कार्यक्रम 'राजू के हालात, गजोधर के साथ' प्रारंभ...
अँधेरे में गजोधर शब्द गूँज रहा है)
गजोधर (सोचत-सोचत): ई कौन माई का लाल जो आधी रात हमार नामवा जपे!
आवाज़ (चौंककर): अरे गजोधर, तुम्ही चले आये यहाँ!
गजोधर (खुसी-खुसी): अरे राजू भैया आप! कौनो नींद नाहीं आवत गाम में का? अब तो आप सितार-होटलवा वाले जो हो गए!
राजू भैया (परेशान): सो तो है गजोधर पर और भी बड़ी मुसीबत हमार गले पड़ गयली है| कल साम में हमार सो है झुमरीतलैय्या में, पर कौनो नवी चुटकियाँ सूझे ही न!
गजोधर (उत्तेजित): ये कौनो मुसीबत नाहीं भैया! आप पुरानी कहानियां की नवी खिचड़ी पका लेना, ई करन वास्ते तो माहिर हैं आप!
राजू भैया (उदास): न गजोधर न, अब ई नाहीं चलत! इह ससुरे इन्टरनेट ने सब गड़बड़ कर डाला; हर सो का विडियो उसपे टांग देवत हैं और हम जब भी कोई पिछली कहानी दुहराते हैं न, तो लोग लिख देवत हैं की ये तो उस फलाना सो में भी कहे थे| सो के पोड्युसर ये सब पढ़-पढ़ के हमार फीस्वा काट लेवत हैं|
अब तुम ही बताओ, बाढ़ में सभी भैंसियाँ बही गयी इस साल, नाहीं तो उनको निहार ही कुछ बूझ लेते; कोई नवे नेता पैदा ही नाहीं होवत, ढेरों बुडबक बुढ़िया गए, गद्दी से फिसल गए, जेल्वा में भर गए; बालीउड में भी सूखा परकोप होवे, मेरी पाखी, पिंकी, डाली, बीना को तो कोई संपवा सुंघा दियो, कोई भी मसालेदार बात न कहें वो आजकल; बची-खुची समस्या, हल करन वास्ते, अन्ना छीन लिए; अब हम का करें? हमको तो दाल-भात की चिंता सुरु हो गयी है, सच कहे दिए हैं गजोधर तुमको!
गजोधर (हैरान): आप बेकार टेनसनवा लेवत हो भैया! अभी ढेरों नेता बाकी होवे जिनके बारे आप कुछ कहत नाहीं; सबसे पुरानी पार्टीवा के सरगना लोगन को भी तो आप की फुलझड़ियों का हक होवे| का उनकी इतनी इज्जत करो की उनके बारे कबहूँ न बोलत हो?
राजू भैया (फुस्फुसावत): इज्जत नाहीं गजोधर, डर्र! हमहूँ बहूहूहूहूत डर्र लागत है| ओ का है ना, हम चुटकुले बनाने में बीजी रहत हैं, हमको फीस्वा का हिसाब करन वास्ते कौनो टाइम नाहीं मिलत| अब इनकम टैक्स का चक्कर तो तुम्ही जानत हो, कौनो जगन बाबू टाइप हमहूँ फंसा डाले सरकार, तो हम का करेंगे? तौबा तौबा!
गजोधर (गंभीर): अरे ई सम्मस्सा तो बड़ी भारी होवे पर हमहूँ मालूम है आप हल खोज लेवोगे| कहो तो आपका मूडवा तनिक बदल देवें|
राजू भैया (अविचलित): ठीक है|
गजोधर (सरमावत-सरमावत): हमहूँ आपको भैया कहिन से डरत हैं आजकल| जब से आपको देखे हैं साड़ी, चोली, सूट में, का बताएं, हमार दिमाग में भूचाल आया और हमार फ्यूज उड़ गया| हमहूँ कौन बिस्वास ही नाहीं होवत की वो अप्सरा आप...वो अप्सरा हमार दिल चीर ले गयी, हाय!
राजू भैया (गुस्सेल): ई का बक रहे हो गजोधर?
गजोधर (धीमे-धीमे): सच कह दिए हैं, हमहूँ तो 'सिल्पा सा फेगर, बेबो सी अदा' सब भूल गए हैं, बस 'पिंकी सा फेगर, पाखी सी अदा' ही याद आवत हैं आजकल| अब हमार मूंह और जिआदा न खुलाओ, हूँ!
राजू भैया (परास्त): ...
गजोधर (चिढ़ात): का राजू भैया, हमहूँ कौनो मजाक करन का हक नाहीं का| ये बातिया रिकॉर्ड कर लिए हैं, कल सो में ये टेप चला लेना!
राजू भैया (हैरान): गजोधर, तुम हमार बतिया रिकार्ड करत हो?
गजोधर (मुस्करात): न भैया, वो साम से आप इक बार भी न हँसे, न हंसाये तो हमहूँ समझ गए थे आप परेसान होवत| वैसे भी आप सबहूँ के बारे बोल बोल उनको परसिद्ध कराये, तो कोई आपके बारे न बोले तो बुरा तो लगे है न, तो हमहूँ बोल दीये|
(अगले कार्यक्रम हेतु विज्ञापन प्रारम्भ)
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