कल और आज
कल यहाँ थे वंदनवार,
गुलमोहर के सजे हुए,
आते जाते बरसायें फूल,
मुस्कुरा पड़ें खिजे हुए|
आज अकेला दिलकश वृक्ष,
खड़ा इमारती जंगल के बीच,
बगल-से गुज़रें कितने प्राणी,
विरक्त, मशीन-से, आँखें मीच।
कल यहाँ थे वंदनवार,
गुलमोहर के सजे हुए,
आते जाते बरसायें फूल,
मुस्कुरा पड़ें खिजे हुए|
आज अकेला दिलकश वृक्ष,
खड़ा इमारती जंगल के बीच,
बगल-से गुज़रें कितने प्राणी,
विरक्त, मशीन-से, आँखें मीच।
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