विखंडित
वो पूछते हैं हमसे आखिर मन उदास क्यों है,
खिलखिलाती हंसी में दर्द का अहसास क्यों है,
चमकती आँखों में अश्रुयों का वास क्यों है,
मीठे बोलों में आज अचानक परिहास क्यों है।
कैसे बतला दें उन्हें वे स्वयं वेदना कि वजह हैं,
तकदीर की कचहरी से हमे मिली अजब सजा हैं,
कोई सीखे उनसे रद्दी से मोहक मूरत जोड़ जाना,
औ खुद-ब-खुद राह चलते वही अजूबा तोड़ जाना।
वो पूछते हैं हमसे आखिर मन उदास क्यों है,
खिलखिलाती हंसी में दर्द का अहसास क्यों है,
चमकती आँखों में अश्रुयों का वास क्यों है,
मीठे बोलों में आज अचानक परिहास क्यों है।
कैसे बतला दें उन्हें वे स्वयं वेदना कि वजह हैं,
तकदीर की कचहरी से हमे मिली अजब सजा हैं,
कोई सीखे उनसे रद्दी से मोहक मूरत जोड़ जाना,
औ खुद-ब-खुद राह चलते वही अजूबा तोड़ जाना।
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