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Monday, December 26, 2011

Bhagirathi Se Jaage Bhag

भागीरथी से जागे भाग

हर की पौड़ी की ओर बढ़ते हुए दस से अधिक लोगों नि हमे रोका, दस रूपये का आरती का दिया खरीदने के अनुरोध करते हुए| इन लोगों ने प्रदेश की सबसे मधुर और विशुद्ध भाषा में गंगा मैया को दिया भेंट करने के फायदों का बयान किया| आखिरकार चिड कर मैंने उनके ही अंदाज़ में कह डाला, "इस दिये से तो गंगा प्रदूषित होती है"| अगले दस कदम चलते हुए मुझ पर तानों की बौछार हो गयी, "अरे इन मैडम पर वक़्त बर्बाद करने का फायदा नहीं, ये तो कह रही हैं की इससे गंगा दूषित होती है, दूषित, ओहो, इनको ऐसी हिंदी भी आती है, बताओ ये जब गंगा स्नान करेंगी तो गंगा दूषित होगी ही नहीं"|  समझ नहीं आ रहा था  की क्या सुनना बेहतर था, ताने या अनुरोध| 

हर की पौड़ी पर दो महिलाएं पीछे पड़ गयीं, "बेटी, यह लो, गंगा मैया को दूध चढ़ा दो, तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी"| देखा, उनके पास करीबन दस लीटर दूध-सा दिखने वाला तरल पदार्थ था, जिसमे से वो एक छोटा से गिलास भर कर दे रहीं थीं, मात्र पचास ग्राम मात्र पांच रूपये में| वो उन सब श्रध्धालुयों का भी हिसाब रख रही थीं जिनने यह भेंट स्वीकार की थी, "उन लोगों से पंद्रह लेने हैं,उधर वालों से बीस और इनसे दस"| हमने सोचा, "खैर बड़े मुनाफ़े का सौदा है यह"|  

मनसा देवी से लौटकर आये तो दोपहर हो चली थी| देखा हर की पौड़ी के पास एक महाशय पुकार रहे थे, "दस रूपये देते जाएँ, गरीबों के खाने के लिए, किसी गरीब का फायदा हो जायेगा, और हाँ, सौ रूपये में ग्यारह लोगों के लिए अन्न दान भी कर सकते हो"| प्रस्ताव काबिले तारीफ़ था| देखा वाकई ही लोगों की लम्बी कतार थी, भोजन पाने के लिए| मन पसीजने ही वाला था की दो महिलायों पर नज़र पड़ी| ये तो वही महिलाएं निकलीं जो पांच-पांच रूपये में पचास ग्राम दूध बाँट रही थीं| किसी ने कहा, "आखिर इनके लंच का भी तो वक़्त हो चला है"| खैर इस रहस्योद्घाटन ने हमे यहाँ चुना लगने से तो बचा लिया|

थोड़ी दूर आगे चलने पर एक और महिला मिली, गोद में दो छोटे छोटे अत्यंत भूखे दिख रहे बच्चे लिए| वह पांच मिनट तक कातर आवाज़ में दो रोटी मांगती हमारे पीछे-पीछे चलती रही| एक दूकान सामने देख कर मैंने सोचा चलो इसे दो रोटी ही दिला दूं| दूकान पहुँचते ही महिला तन गयी और झट से आर्डर कर डाला, "छह रोटी और एक दाल फ्राई पैक कर दो"| मुझे खटका हुआ| इतनी ही देर में उसके साथ और दो बच्चे आ खड़े हुए| मैंने कहा, "चलो यह छह रोटी आप सब लोग खा लेना"| महिला गरजी, "मैं इनको नहीं जानती, इनको तुम अलग से दिलाना"| परिस्थिति देख होटल वाला बोला, "आप इनको पराठे दिला दो, आपको सस्ते पड़ेंगे, खाने के लिए अचार और दही भी साथ मिल जायेगा"| महिला ने झट टोका, "दीदी, पराठे तो बहुत ऑयली हैं, मैं इतना तेल वाला खाना नहीं खाती"| सुन मेरे तन बदन में आग लग गयी, खून खौल उठा, मन किया इस महारानी को एक चांटा रसीद दूं और पूछूं, "क्या मैं तुम्हे पागल दिखती हूँ?" पर अफ़सोस, मैं ऐसा कर नहीं पायी| होटल वाले को कहा, "पार्सल करने की कोई ज़रुरत नहीं"| सामने परसाया और अंगारे बनी आँखों से घूरते हुए उन तीन महार्थियों को खाने को मजबूर किया| मुझे डर था कहीं वो उस खाने को वापिस बेच पैसे न कमा ले! और वो दो आगंतुक बच्चे भी उसे 'मम्मी' कह संबोधित करने लगे| 

आगे चले, गंगाजल लेने के लिए खाली बोतल खरीदी, पूरे बीस रुपयों में| इससे तो सस्ती मिनेरल-वॉटर भरी बोतल मिल जाती है| गंगाजल लेते हुए देखा, एक महापुरुष आईना लिए पानी में सिक्के खोजता चला जा रहा है| दूसरी ओर कुछ और महापुरुष जाल में फंसाकर बहते दिए निकाल रहे हैं और सुखा रहे हैं, कुछ लोगों के बहते और बहाए कपड़े निकालने में व्यस्त हैं| 

इन्हीं नज़ारों  का लुत्फ़ उठाते हम ऋषिकेश को निकल पड़े| शाम को लौटे, आरती देखी, हर कि पौड़ी पर कुछ वक़्त बिताया और पास में खाना खाया| आठ बजे लौटने को हुए, हर कि पौड़ी को जाने वाले पुल पर कुछ याचकों ने गुहार लगायी, "अरे गंगा मैया के नाम कुछ तो देते जाओ, कम से कम बोनी तो कराते जाओ"| बोनी, रात के आठ बजे! किसी ने कहा, ये लोग शायद 'नाईट-शिफ्ट' में आये होंगे|

हरिद्वार से लौट आने पर यह याद आया, वहां रहते हरि की याद तो आ ही नहीं पायी| आखिर हरि के बन्दों ने इतना व्यस्त जो रखा! बाकी यादें तो धूमिल होती जा रही हैं पर उस 'दो रोटी' मांगने वाली को नहीं भुला पायी हूँ| अब भी यही सोचती हूँ की क्या उसका पराठे से इनकार करना इतना बड़ा गुन्हा था, क्या दाल-फ्राई मांगना इतना बड़ा जुर्म था| कभी तो ख्याल आता है की हाँ था, कभी महसूस होता है कि क्या एक इतने तुच्छ परोपकार ने मुझे इतना घमंडी बना दिया और उस बेचारी की पसंद का निर्णय करने का हक दे दिया?



Wednesday, December 7, 2011

आँखों में नींदें लिए

It can't get harder to get up for office on a winter morn with melodious songs playing in the background. This is how Shaan's lines get garbled in the haziness of sleepiness!

आँखों में नींदें लिए

आँखों में नींदें लिए, 
बिस्तर से उठ तो दिए,
जाने ठंडी में दुबके अब जायेंगे कहाँ|

Office से calls आयें,
मन में बहाने लायें,
मन में ही रह जाये बहानों का जहाँ,
Boss नया है, अनजाना है teammate,
पहुंचेंगे शायद फिर हम late!

Boring office, hectic project,
जाएँ वहां, फिर क्यों झटपट! 

Client के नज़ारे देखे, 
Boss के इशारे देखे,
मन में फिर भी movie का ख्वाब है जवाँ|
कितने तो weekend आये,
Office में spend कराये,
आँखों में झलके holiday की लालसा,
Picnic के plan से झूमे, मन करे salsa,
Project का जाने होगा क्या!
Boring office, hectic project,
जाएँ वहां, फिर क्यों झटपट!


मैं पागल तो नहीं

Sibal, the only member of 'species with two Y chromosomes' seems to give 'Mouth-Loose' Diggi a serious competition for the award of the 'Biggest fool in the history of India' and he even hums these lines to support his claim...


Monday, November 28, 2011

Fir Desh Ko Kyon Behaal Kiya Hai


फिर देश को क्यों बेहाल किया है 

नागार्जुन की कविताओं में क्या तुमने कभी अकाल जिया है?
दिनकर की रचनाओं से क्या तुमने विक्रांत ख्याल लिया है?
शहीद सुभाष से सीखे क्या आतंक वादी को बवाल दिया है?
बापू भांति किसी पीड़ित का क्या तुमने कभी मलाल लिया है?
यह कुछ तो तुम कर न पाए, फिर देश को क्यों बेहाल किया है?

रातों जग किसी वैज्ञानिक सा कोई खोज या कमाल किया है?
नेक नागरिक की खातिर क्या अपनों से ही सवाल किया है?
अनाथ बालकों के भोजन को क्या कभी चंदा डाल दिया है?
क्या सरहद पर न्योछावर वीर के परिवार का हाल लिया है?
भ्रष्टाचार और महंगाई से, फिर देश को क्यों बेहाल किया है?

Sunday, November 27, 2011

All That You Deserve Is Null

Soup boys seem to follow Majrooh Sultanpuri's adage 'May you burn in hell Anamika' rather than Sahir Ludhianwi's 'Move on from a beautiful juncture'.

All That You Deserve Is Null

Why do soup boys sing why this kolaveri di,
When you forced the fairy to say no already?
By the way you treat a girl,
All that you deserve is null.

If you stalk her for a week or two,
Still proposal doesn’t go through,
You thunder, ‘Listen, I love you’
And show her all your colors true.

If you think parents won’t agree,
Yet want status of some degree,
And flaunt her as a piece of filigree,
You invite wrath on your pedigree.

If you know that she is really pampered and lazy,
You say that post marriage your life looks hazy,
As you the husband will have to cook like crazy,
Then all you want is a chef to make your life easy.

If you ask her indirect questions,
She isn’t blind to your intentions,
As you continue with pretensions,
You betray trait’s ugly dimensions.

If you think you really like her,
Yet fear of denial is a bit of bother,
What your pals gonna say for ever,
Ego is what you love, not really her.

Why do soup boys sing why this kolaveri di,
When you forced the fairy to say no already?
By the way you treat a girl,
All that you deserve is null.


Saturday, November 26, 2011

Kuch Adhoora Sa

'Their' attitude towards a girl is a true reflection of her position in the society. Many things have changed in favor of the so called Lakshmi, many are yet to change. These lines convey the feelings of a girl whose thoughts belong to the next generation.

कुछ अधूरा-सा 

बड़े शहर में जब जन्मी कन्या, दूर गाँव से दादी आयी,
किन्नर भी आये आशीर्वाद सजाये और भेंट  मंगायी,
दादी को लगा फिर सदमा, किन्नरों पर ढेर चिल्लायी,
माँ का मन कशमकश में, बेटी मंद मंद मुस्कुरायी |

रेल में भी किन्नरों ने जब तरफदारी नहीं दिखलायी,
अनसुनी कर पीर की झल्लाहट, कन्या से भेंट कमायी,
किसी ने तो उसकी काबिलियत पर सहमती जतलायी,
इस जीत की पताका बनी वो गर्वित फूली न समायी |

दुल्हन बनी बेटी ने अपनी अनोखी इच्छा बतलायी,
'किन्नर बुलवाएँ'? सुन घरातियों की टोली चकरायी,
रूठी रानी संभल गयी जब माँ ने यह उम्मीद जगायी,
उसकी बेटी की शादी पर होगी यह सामाजिक सच्चाई |



Friday, November 25, 2011

I Am A Regular Kid

Claim: We kids with our regular activities are as beneficial for humanity as are bees and their nectar stealing for flowers.

I Am A Regular Kid

I am a regular kid and I know it.
Neighbors, oh they won’t show it!

You must have seen its jumbo nails,
Blood stained green zillions of nails,
That real ghost lives in Gulmohar.
I climbed up to befriend the specter,

There was one more, albeit slender,
Stuck on a wire, to my wonder,
As I chanced to trespass the clown,
It pushed me off and I fell down.

Floating in an aerial ambiance,
With ample frolic as I jived,
Wow, it was the best experience,
Sorrow, it was so short lived.

As my head got readily rooted,
In soil heap just below the tree,
I looked like one too, undisputed.
Savoring rare mutation spree,

With branching legs and a torso trunk,
Adorned with toes as if leaves shrunk,
Offshoots of arms and sepals of nails.
Unmindful of my protests and wails,

I was pulled out of the yummy soil,
And drenched with garden hose coil,
To wash away my tasty memories;
And prepare for detested drudgeries,

As lying still to let the pale devil peep,
And scream clots when can’t see deep;
Doc pointed at a worryingly big blot,
Which looks cute and I adore a lot.

See, that’s my gifted brand new brain,
Which gives me spunk and kills refrain.
All grannies are sad and lonely at noon,
Wishing visits from kids as far as moon,

As little tears drip from their eyes,
New brain fails to bear those cries.
I ring their low-rise doorbells,
And deliver generous sequels,

But grannies are still not happy,
They get snappy, call me crappy!
Next I deflate bicycle tires,
All I get in return is ires.

How to tell I am charity trainer,
And pumping is a cellulite slainer!
Soon their junk bodies start to tone,
But my services remain unknown!

They preach bitching is so bad,
Yet gossip makes them go mad,
Try to confirm those back bytes,
All you hear is 'this is heights'!

As trash slips out of houses onto the streets,
I send that back with monkeys and tweets.
They, for my act and words of wisdom,
Have named me king of monster kingdom!

Best is to splash in mini mud pools,
Created fresh by cleaning schools,
And paint sparkling cars all over,
In shades of earth over and over.

Now cleaners drain away the water,
And the pools dry much much faster,
Now roads have started to last longer,
Yet no gain to my image of evil monger!

I am a regular kid and I know it.
Neighbors, oh they won’t show it!

Sunday, November 6, 2011

Raju Ke Haalaat, Gajodhar Ke Saath

(लोकप्रिय कार्यक्रम 'राजू के हालात, गजोधर के साथ' प्रारंभ...
अँधेरे में गजोधर शब्द गूँज रहा है)

गजोधर (सोचत-सोचत): ई कौन माई का लाल जो आधी रात हमार नामवा जपे! 
आवाज़ (चौंककर): अरे गजोधर, तुम्ही चले आये यहाँ!
गजोधर (खुसी-खुसी): अरे राजू भैया आप! कौनो नींद नाहीं आवत गाम में का? अब तो आप सितार-होटलवा वाले जो हो गए!
राजू भैया (परेशान): सो तो है गजोधर पर और भी बड़ी मुसीबत हमार गले पड़ गयली है| कल साम में हमार सो है झुमरीतलैय्या में, पर कौनो नवी चुटकियाँ सूझे ही न!
गजोधर (उत्तेजित): ये कौनो मुसीबत नाहीं भैया! आप पुरानी कहानियां की नवी खिचड़ी पका लेना, ई करन वास्ते तो माहिर हैं आप!
राजू भैया (उदास): न गजोधर न, अब ई नाहीं चलत! इह ससुरे इन्टरनेट ने सब गड़बड़ कर डाला; हर सो का विडियो उसपे टांग देवत हैं और हम जब भी कोई पिछली कहानी दुहराते हैं न, तो लोग लिख देवत हैं की ये तो उस फलाना सो में भी कहे थे| सो के पोड्युसर ये सब पढ़-पढ़ के हमार फीस्वा काट लेवत हैं| 

अब तुम ही बताओ, बाढ़ में सभी भैंसियाँ बही गयी इस साल, नाहीं तो उनको निहार ही कुछ बूझ लेते; कोई नवे नेता  पैदा ही नाहीं होवत, ढेरों बुडबक बुढ़िया गए, गद्दी से फिसल गए, जेल्वा में भर गए; बालीउड में भी सूखा परकोप होवे, मेरी पाखी, पिंकी, डाली, बीना को तो कोई संपवा सुंघा दियो, कोई भी मसालेदार बात न कहें वो आजकल; बची-खुची समस्या, हल करन वास्ते, अन्ना छीन लिए; अब हम का करें? हमको तो दाल-भात की चिंता सुरु हो गयी है, सच कहे दिए हैं गजोधर तुमको!  
गजोधर (हैरान): आप बेकार टेनसनवा लेवत हो भैया! अभी ढेरों नेता बाकी होवे जिनके बारे आप कुछ कहत नाहीं; सबसे पुरानी पार्टीवा के सरगना लोगन को भी तो आप की फुलझड़ियों का हक होवे| का उनकी इतनी इज्जत करो की उनके बारे कबहूँ न बोलत हो?
राजू भैया (फुस्फुसावत): इज्जत नाहीं गजोधर, डर्र! हमहूँ बहूहूहूहूत डर्र लागत है| ओ का है ना, हम चुटकुले बनाने में बीजी रहत हैं, हमको फीस्वा का हिसाब करन वास्ते कौनो टाइम नाहीं मिलत| अब इनकम टैक्स का चक्कर तो तुम्ही जानत हो, कौनो जगन बाबू टाइप हमहूँ फंसा डाले सरकार, तो हम का करेंगे? तौबा तौबा!
गजोधर (गंभीर): अरे ई सम्मस्सा तो बड़ी भारी होवे पर हमहूँ मालूम है आप हल खोज लेवोगे| कहो तो आपका मूडवा तनिक बदल देवें|
राजू भैया (अविचलित): ठीक है|
गजोधर (सरमावत-सरमावत): हमहूँ आपको भैया कहिन से डरत हैं आजकल| जब से आपको देखे हैं साड़ी, चोली, सूट में, का बताएं, हमार दिमाग में भूचाल आया और हमार फ्यूज उड़ गया| हमहूँ कौन बिस्वास ही नाहीं होवत की वो अप्सरा आप...वो अप्सरा हमार दिल चीर ले गयी, हाय!
राजू भैया (गुस्सेल): ई का बक रहे हो गजोधर?
गजोधर (धीमे-धीमे): सच कह दिए हैं, हमहूँ तो 'सिल्पा सा फेगर, बेबो सी अदा' सब भूल गए हैं, बस 'पिंकी सा फेगर, पाखी सी अदा' ही याद आवत हैं आजकल| अब हमार मूंह और जिआदा न खुलाओ, हूँ! 
राजू भैया (परास्त): ...
गजोधर (चिढ़ात): का राजू भैया, हमहूँ कौनो मजाक करन का हक नाहीं का| ये बातिया रिकॉर्ड कर लिए हैं, कल सो में ये टेप चला लेना!
राजू भैया (हैरान): गजोधर, तुम हमार बतिया रिकार्ड करत हो?
गजोधर (मुस्करात): न भैया, वो साम से आप इक बार भी न हँसे, न हंसाये तो हमहूँ समझ गए थे आप परेसान होवत| वैसे भी आप सबहूँ के बारे बोल बोल उनको परसिद्ध कराये, तो कोई आपके बारे न बोले तो बुरा तो लगे है न, तो हमहूँ बोल दीये| 

(अगले कार्यक्रम हेतु विज्ञापन प्रारम्भ)

Wednesday, November 2, 2011

Sandal Speak

Sandal Speak

I was worried about my destiny,
But got packed in silk and satin
And dispatched in a limo shiny,
To be ushered in an aero cabin.

Welcomed by excited screams,
Landed in the courteous city;
To be led to a palace of dreams,
In a procession like a deity.

I was treated to a lavish gloss,
Prepared by a dozen champs
And sequined with golden floss,
To be exalted with lamps.

Adorned on high head of elite,
As Bharat did eons back;
To be strapped on sissy's feet, 
I was taken to her shack.

Stooping officers in public view,
Rubbed across their own hankies,
Till last invisible grime flew,
To felicitate F1 pros and rookies.

I was covered all over in dirt
And left outside the threshold,
To be kicked around and hurt,
Those days are gone and old.

At my smacks the state flinches,
My headlines making virtues,
By raising her glory three inches,
Are to be immortalized in statues.


Monday, October 24, 2011

A Beautiful Mind - Part III

A Beautiful Mind - Part III

At Ayana, the grand pre-wedding ceremony,
We were being served the traditional dinner,
When my friend offered me a cuisine
That pleased my finicky palate more
Specially prepared by her mom for me
When chefs had prepared the food for others!

Shocked I was that she could still think of this
For a friend on the eve of her wedding,
Embarrassed I was beyond words for forcing
The gracious hosts for the exclusive treatment 
Grateful forever I would be for the best meal
And for teaching me what relationships mean!


Saturday, October 22, 2011

A Beautiful Mind - Part II

A Beautiful Mind - Part II

She asked me to accompany her,
To the abode of life and tranquility,
The famed ashram, to fetch a potion
For the emperor of maladies; 
The purpose brought alive memories
Which kept her melancholic
Till it was time for lunch and we headed
To the sylvan glade a mile away.

Leaving shoes outside as per custom, anxious was I
But she reassured given the sanctity of the place.
A sea of devotees was seated across
The rows of mats in the huge dining,
Where synchronized serving and partaking hands
Appeared to create dancing waves,
Soon we were a part of these waves
And came out satiated and smiling.

As destined my shoes had disappeared,
Feeling guilty she offered me her pair,
I refused and insisted on walking barefoot, 
Seeing her pleas fail, she picked up hers
And started accompanying me barefoot!
It was my turn to protest but to no avail and
With her shoes dangling merrily in her hand,
We covered the mile back arguing.

I was used to walking like this and
Was least affected; unaccustomed,
Her feet got badly bruised, yet
The only thought playing on her mind
Was that she was the reason behind my
Supposed loss and plight, though 
My real trouble was to hold back tears
As she drove us back some fifty miles.


Friday, October 21, 2011

A Beautiful Mind - Part I

A Beautiful Mind - Part I


तोहफे को निहारता, बन्दे का खिला चेहरा,
TTE के आने से, पड़ गया फीका,
कांपते हाथों से टिकट दिखलाई,
M के बदले छपे F की मांगी माफ़ी | 
सबने सोचा 100 का नोट तो बनता है,
बन्दे का हाथ भी पर्स पर ही टिका था, 
आगे से ध्यान रखिये, कहते हुए बढ़ा आगे 
हमने कहा, कमाल! ये तो इमानदार निकला |  

घंटे भर बाद नींद खुली, अगली सीट पर नज़र रुकी, 
कोई बैठा था वहां, बेल्ट में gun अटकाए,
पल भर के झटके के बाद सोचा gun छीन लूं 
पर सामने बैठी बहन को देख मन पलटा
आनन्-फानन में TTE-CRPF को खोजा,
अगले ही डब्बे में वो TTE मिल गया
किस्सा सुन वो चला gunman के पास, टिकेट मांगी
वो बोला, MLA का गार्ड हूँ, दो स्टेशन बाद उतरना है |

मुझे देख अब भी नाखुश, TTE बोला,
अगले ही डब्बे में है मेरी सीट,
गार्ड जी आप वहां आराम फरमाओ
और gunman के साथ चल पड़ा,
ठीक से शुक्रिया भी न कहने दिया
पर न जाने कैसे कुछ बोल निकल पड़े,
तो देखे केवल मन, अभी तक मूक बना बन्दा,
मुस्करा पड़ा जैसे सहमती जता रहा हो |   

Use Intezaar Hai

Did not know that the concept of Nautanki existed outside the realms of Hindi films also till happened to witness one going on in the grand garden of a so-called posh hotel!

उसे इंतज़ार है

दिल्ली की कोलाहल से दूर, बसा है संगम शहर मशहूर!
ढलते पहर का था कसूर, जो देखा लिया ग़मगीन दस्तूर!
शीला-मुन्नी पात्र यथार्थ है, कल्पना  नहीं, मरीचिका नहीं!
नचायें उसे लोभ-स्वार्थ हैं, जीवन के उसकी दिशा नहीं!

सजावट आलिशान,  इंतज़ार में आसथान,
दर्द भरी मुस्कान, फिर भी ठुमके में जान,
उन्मत्त हैवान, नर्तकी के गुण-रूप से हैरान,
उसके नयन बेज़ुबान, फिर भी मन परेशान!

कौतुक-वश उसे बुलवाया, हुनर सहराया,
उसके हालात की दास्तां का सवाल दोहराया;
'तारीफ न करना मेरी, तारीफ तो चुभता काँटा है,
जिसकी नोक पे, मुझे दुनिया ने बाँटा है!

माँ से छुप-छुप कर दिन रात रियाज़ किया,
जूनून के कौंध में अंध, मेनका का ताज़ लिया,
हाय मैं तो जीत कर भी हार गयी,
पल भर में स्वर्ग से धरा पर आ गयी!

उन मदहोश आँखों की ललक भरी ज्वाला से मेरी रूह दहकती है!
तुम्हारी आँखों के तरल आईने में मेरे दर्द की आत्मा झलकती है!
क्या सोच तुमसे मिलने आ गयी, अजब आत्मीयता पा गयी!
माफ़ करना तुम्हे बहिन पुकार गयी, पत्थर का दिल हार गयी! 

जीत कर हारने वाली को जानवर कहते हैं,
मुझे शीला-मुन्नी, उसे खच्चर कहते हैं,
वहां गले में बंधे घंटी, यहाँ पैरों में घुँघरू,
वहां बदन पे बोझ, यहाँ भी यही आबरू!

जो सच इस दलदल से निकालने की नीयत हो, 
तो पगली, मुझे अपनी मेहरी की ही हैसीयत दो,
या फिर संग मेरे इस नरक की अग्न में जलो,
वरना तो इसी पल अपनी दुनिया में लौट चलो!'

विकल्पों से सिहर गया मेरा अंतर-मन,
पीछे हटने लगे कदम मेरे अन-मन,
वो मासूम दिखी पल-भर को चालबाज़,
बस गूंजते रह गए उसके अलफ़ाज़!

'यों नहीं कि अश्क को छलकना नहीं आता, कसूर बेदर्द दारु और हिजाब का है!
यों नहीं कि थिरकते पैरों को थकना नहीं आता, सवाल उड़ते पैसों के हिसाब का है!
यों नहीं कि उम्मीद को तैरना नहीं आता, क्या करिये जो दरिया तेज़ाब का है!
यों नहीं कि जुबां को और फिसलना नहीं आता, इंतेज़ार अब आपके ज़वाब का है!'

Wednesday, August 31, 2011

Bhaag Neta Bhrasht!

Bhaag Neta Bhrasht

public mujhse boli,
tu galti hai meri,
tujhpe voting right,
guilty hai meri,
insaa ki shakal mein,
neta tu to nikla kaala kaag,
kaag, kaag, bhaag!

bhaag, bhaag, bhaag, bhaag,
bhaag, bhaag, bhaag, bhaag! 

Oh by Ghoos lag gayi, 
kya se kya bana, 
banaya jo mahal,
jhaanka to hawalat, 
piddi jaisa anna, 
pakda to nikla bangla baagh,
baagh, baagh, bhaag!

bhaag bhaag neta bhrasht neta bhrasht neta bhrasht,
bhaag bhaag neta bhrasht neta bhaag!

bhaag bhaag neta bhrasht neta bhrasht neta bhrasht,
janta aayi hai!!!!!!!!!

maine kisko loota,
kaise ghisa kiska joota,
kya pataa,
government won’t have a clue!

itna hi pata hai,
corruption chode to bhalaa hai,
peechhe to,
ek Lokpal phaade mooh,

ye janta aayi hai, 
sandesha laayi hai, 

janta aayi janta aayi janta aayi janta aayi,
bhaag bhaag neta bhrasht neta bhaag!

hum to hain lutere, 
ghotale kare bahutere,
sarkar..
jo khaye to chale,

kismat ki hai kadki,
ghoos niveden aur dhamki,
teeno hi,
aaj ki date na chale!

ramleela garden hai,
jahan anna maali hai,
public ka intellect, frustration mein
aaj gaya hai jaag,
jaag, jaag, bhaag!

bhaag bhaag neta bhrasht neta bhrasht neta bhrasht,
bhaag bhaag neta bhrasht neta bhaag!

bhaag bhaag neta bhrasht neta bhrasht neta bhrasht,
bhaag bhaag neta bhrasht neta bhaag!

hey, janta aayi janta aayi janta aayi janta aayi,
bhaag bhaag neta bhrasht neta bhaag,
janta aayi haiiiiiiiii!

public mujhse boli,
tu galti hai meri,
tujhpe voting right,
guilty hai meri,
insaan ki shakal mein,
neta tu to nikla kaala kaag,
kaag, kaag, bhaag!

bhaag bhaag neta bhrasht neta bhrasht neta bhrasht,
bhaag bhaag neta bhrasht neta bhaag!

Monday, August 29, 2011

Designer Diplomacy

The curtain rises.

The headline and photos on the front page interview of a reputed national daily catches our psychopath reader's attention.

Tete-a-Tete With Designer Darling HRK

Reporter: Ms Hina, Welcome to India! Thanks for taking out your precious time to talk to us. How do you find our country?
HRK: It feel good!
R: Visiting Hurriyat leadership was high on your agenda, how did the meeting go?
HRK: Oh, family reunions are always fun and nostalgia, wish I visit Kashmir, they told it is very beautiful; India obsessed with beauty, that's why want to control.
R: M'am, you are the first politician to trend on twitter for your style statement, what is your reaction to our people's reaction to you?
HRK: I very happy, they are notice, I put in so much of efforts.
R: Can you please give details your efforts, I am sure our politicians would be happy to follow. Till now, many of them don saris worth a few lakhs every day, but no one seems to notice!
HRK: It is different, my other leaders threaten and bargain with big brothers to get some allowances and we given some. Don't you say better spend on pearls than grenades! And you know, my grandmother opened best secret to me, pearls, clothes and bags are contrasted, don't coordinated.
R: Well said M'am. You reminded us of Maharani Gayatri Devi who was discussed for her style statement. During an interview, she had also disclosed that the most important teaching of her grandmother was that never wear emeralds with green sari because they look much better with a pink sari. There is so much of similarity between the people of these two countries! And look at the similarity in names, we are proud of SRK, Pakistan is proud of HRK.
HRK: You talk about him, I hear he is production house owner. Do you think I can contact him for a Bollywood film, I hear it is lot of moneys.
R: Given your popularity, I am sure he will become the richest producer if he gets an opportunity to cast you. Your message would be duly passed on to him.
HRK: I want to be heroine, but no one in my family gone to college, only I gone, they made rule only college educated fight elections and I had to fight to save our family wealth.
R: Wish India could learn at least this from Pakistan, only college educated fight elections! You are so young, how do you manage to take important decisions on foreign policy which is so important for any country, especially Pakistan.
HRK: It is easy, I have an 'Army' of advisers to help in politics work.
R: We hope that this bilateral exchange between our countries continues in the right direction and we get to see you in India more often. Till then, true to your name, memories of your first visit will keep on dyeing our thoughts. 

The psychopath is left scratching head trying to discover diplomacy in this designer discussion.

Curtain.

Saturday, August 20, 2011

Role Model

A month before the common man found an effective channel to vent out his anger and frustration at the governing system infested with corruption, I happened to travel to a far off place. Name does not matter to me anymore as I am optimistic about coming across more places like this. This place has a couple of structures of historical and architectural importance lying in a state of somewhat neglect for lack of funds. I would not have gone to this place for getting a mere look these structures but since I happened to be there, I thought it fit to pay a fleeting visit to these structures.

The first one is a palace, very thoughtfully built few centuries back. Now, it stands very carefully renovated with betel-juice paint, graffiti, pee and pigeon nests. Being very well lit and ventilated, the after effects of renovation do not suffocate me and I decide to quickly hop around. The curator is delighted that after a long time, someone with intentions not malicious entered the property. So he enthusiastically takes me around. On inquiring about the second structure, the big, circular underground bath or  the 'gol bawari', he is even more delighted and calls up the curator there to inform him about my impending visit. Then he explains that the structure is kept locked to prevent nuisance mongers from mutilating it.

The curator at the bath is a very friendly uncle. Sheer happiness is visible from his face as he takes me around and explains the working of the elaborate system of yesteryear. I am aware that he has come  all the way from his home in the afternoon sun for me. Purely based on previous conditioning to handle such situations, I feel obliged to reward him. This obligation is partly because of my host's genteel nature and partly because I believe that he would be expecting it and would feel highly disappointed if I leave without tipping him. As we come out, I take out a hundred rupee note and offer it to him saying, "Uncle, please have some tea."

I was not prepared for what happened next. He refused it very graciously with folded hands. I insisted. He said, "Sir, it is not needed, God has provided me everything. I got a chance to show you around, what could have been a bigger reward!" My head hung in shame in front of this man who could not  think of justifying greed with the burden of a daughter's marriage or son's education.

Looking at the swinging corn ears and the distant hillocks on my way back, I could not help humming these lines...

निकृति की अग्नि से जलते हुए मन को, मिल जाये ईमान की छाया, 
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैंने जब से परिचय तेरा पाया |


Anna Ki Chetavani

Inspired by an apt observation (from Dinkar's epic conversation) on government's initial reaction to Anna's fast...

अन्ना की चेतावनी 

वर्षों तक प्रदेश में घूम घूम,  सरकारी विघ्न को चूम चूम,
सह चोरी महंगाई भ्रष्टाचार, अन्ना को यह आया विचार,
बेईमान न हर दिन चलता है, देखें क्या हल निकलता है;
उन्नति की राह दिखाने को, सरकार सुमार्ग पर लाने को,
मनमोहन  को समझाने को, भीषण अपकर्ष बचाने को,
अन्ना जी राजधानी आए, जनता का संदेशा लाये|
हो न्याय अगर तो लोकपाल दो, पर इसमें भी यदि बवाल हो,
तो कर दो केवल पाँच परिवर्तन, पाओ अपने बिल का समर्थन,
हम वहीँ संतुष्ट हो जायेंगे, सरकार से विरोध न जताएंगे;
मनमोहन वह भी दे ना सका, आशीष देश की न ले सका,
उलटे अन्ना को बाँधने चला, जो था असाध्य साधने चला,
जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है|
अन्ना ने जेल स्वीकार करी, नव क्रांति की हुंकार भरी,
डगमग डगमग दिग्गज डोले, अन्ना कुपित हो कर बोले,
अन्दर रख कर साध मुझे , हां हां मनमोहन बांध मुझे;
ये देख गगन मुझमे लय है, ये देख पवन मुझमे लय है,
मुझमे विलीन भारतीयता सकल, मुझमे लय तरुण सकल,
ईमान फूलता है मुझमे, बलिदान फूलता है मुझमे|
त्रस्त नागरिक की चाल देख, अपनी सरकार का काल देख,
हित वचन नहीं तुने माना, जनता का मूल्य न पहचाना,
तो ले मैं भी अब जाता हूँ, अंतिम संकल्प सुनाता हूँ;
याचना नहीं अब प्रदर्शन होगा, जीवन भू को समर्पण होगा,
समक्ष वतन एकीकृत होगा, न और सहय भ्रष्टाचार होगा,
भ्रष्ट राजनीतिज्ञ सर्वनाश देखेगा, जनता का जीवन सुधरेगा|
लोग कर का हिसाब मांगेगे, पारदर्शकता, स्फूर्ति मांगेगे, 
सब पर जांच का शिकंजा होगा, मंत्री विशेष न उन्मुक्त होगा;
मनमोहन प्रदर्शन ऐसा होगा, फिर कभी नहीं जैसा होगा,
आखिर तू भूशायी होगा, भ्रष्टाचार का अनुयायी होगा;
थी सभा सन्न, सब नेता डरे, चुप थे या थे नीचे गिरे,
केवल दो नर न अघाते थे, परदेस का जो सुख पाते थे|

Monday, July 25, 2011

Intekaam Ki Vidambana

इंतकाम की विडम्बना

रोको रोको वह चिल्लाई,
                शांत शाम में तेज़ी आई,
दौड़ पड़ा था एक आदमी,
                उसके पीछे भीड़ आ जमी,
पहरेदार ने उसको रोका,
                किसी बुज़ुर्ग ने उसको टोका,
ख़त्म तमाशा मै चल पड़ी,
                अपने काम की थी हड़बड़ी;
लौटकर सुना जो किस्सा,
                मर गया दिल का एक हिस्सा!


वो पहरेदार से पूछ रही थीं,
                चोर के शक में डूब रहीं थीं,
वह टाल रहा था सवाल,
                पर महिलायों की जिद्द थी बवाल,
झल्लाकर उसने बोल दिया,
                दर्द को लफ़्ज़ों में तोल दिया,
चार महीने पहले की थी शादी,
                आज बहन की चिता जला दी;
पोस्ट-मोर्टेम ने हत्या जतलाई,
                बहनोई को मारने चला भाई!


जो नज़र गयी भीड़ पर, देखा,
                वह भाई पड़ा था सड़क पर,
बुज़ुर्ग का उसके सर पे हाथ था,
                शायद यह माँ का साथ था,
वह कुछ समझा रही थी उसको,
                शायद पिला रही थी दुःख को,
मायूस चेहरे पे साफ़ लिखा था,
                उस अधमरे शरीर से साफ़ दिखा था;
मै लाचार हूँ, मै बेकार हूँ,
                बहन की मौत का मैं ज़िम्मेदार हूँ!


क्या बीत रही होगी उस माँ पर,
                तोड़ गया होगा जिसे जुर्म बर्बर, 
फिर भी कैसे उसमे हिम्मत है,
                क्यों उसे इन्तकाम अ-सम्मत है,
शायद वधु-प्रपुत्र की चिंता होगी,
                शायद व्यवस्था से अवगत होगी,
कि असली मुज़रिम छूट जायेंगे,
                औ उसके बेटे को जेल की राह दिखायेंगे; 
एक बेटी के ग़म में वह जी लेगी, 
                 मासूम प्रपुत्र की आत्मा तो नहीं जलेगी!

Wednesday, March 16, 2011

Asmanjas

State of mind on signing the first technology transfer deal...

असमंजस 

असमंजस की आंधी में बंजर है, सपनों से सींचा, उर्वर मनीषी उपवन!
चाहूँ मै उड़ना, उसके लिए पर, पर मांगें पैसे, पैसे की अस्फुट उलझन!

विचारों की दरिया में डूबते हुए मन को, मिलता न तिनका, किनारा,
आंसू की वर्षा को, मन की हताशा को, मिलता कलम का सहारा,
प्रलोभन हैं ज़्यादा, समझ की कमी है, किस्मत का ढलता सितारा,
कांपते हाथों से दस्तखित सौदे के पर्चों का पल पल घूमे नज़ारा,
रत्तीभर मुनाफे में बेचा है मैंने कल, अपने कलेजे का टुकड़ा अनमन!
चाहूँ मै उड़ना, उसके लिए पर, पर मांगें पैसे, पैसे की अस्फुट उलझन!

पल में बदलते इरादों-विचारों से भरा गया मेरी कल्पना का पिटारा,
चाहत है बढती नयी निर्मिती की, अब तो मुझे रतजगे भी गवारा,
प्यास और भूख नहीं, पहेली के हल का कहीं तो मिले इक इशारा,
इनामी भंवर में फंसा बावरा मन आतुर है, जल्द हो सौदा दोबारा,
किसी की अमानत बनेगा फिर, जटिल जतन से हुए सुमन का सृजन!
चाहूँ मै उड़ना, उसके लिए पर, पर मांगें पैसे, पैसे की अस्फुट उलझन!

असमंजस की आंधी में बंजर है, सपनों से सींचा, उर्वर मनीषी उपवन!
चाहूँ मै उड़ना, उसके लिए पर, पर मांगें पैसे, पैसे की अस्फुट उलझन!

Luck By Chance

The havoc wreaked by the recent Tsunamis in Japan has made me re-live the horror of 2004 and brought back to memory many of the related incidents. One such sad incident involved an ill-fated police inspector of bad repute who was amazed by the extensive low tide and rushed to explore the newly exposed sands for pearl shells on his new bike. That became his last journey as he was surrounded by many feet high mud springs splattering from underneath the sand and that was the last time he was seen. There was another man of similar repute on another island with a better(?) fate...

He was known to one and all as 'Raghu's Father' in the nondescript town of Shivpur. Raghu was still a middle school student while his friends were about to complete their schooling and was better known as a notorious character. Not every one was known by his children's names in Shivpur. It depended on who, the father or the son, was known more.

Raghu's father was a lineman in the electricity department and his job ensured that local drink 'Handiya' never ran out of supply for him. He made the best use of his wages by keeping himself drunk day in and day out. He was the last person to be called in case of any line faults as no one wanted to put his life in danger. Sooner than later it started creating problems, especially when he was the only lineman on duty at night and a minor rainstorm disrupted the town's power supply. Complaints against him started escalating and he was eventually punished by being transferred to a remote island of Kanata with a population count of double digits. Some suspected that this disciplinary action was a boon in disguise for him as it gave him the opportunity to drink more freely and frequently.

Almost all of the houses on the Kanata Island were beach facing and presented an exotic sea view. This arrangement was for rather practical than aesthetic reasons. The land was flat for a few meters along the shore and the rest of the island was hilly. There was a dispensary atop the hill and a single narrow winding road  led to it. A huge party was held there on Christmas night and people returned home at midnight, heavily inebriated. The compounder had to stay behind as the Engineer Sahib was taken ill after the heavy bout of drinking. Power supply was disrupted at three in the morning and by five all the candles were exhausted. It was now that the compounder started for lineman's house. He had a very tough time waking him up and it was already six by the time they could start back for the dispensary. The compounder was still wondering how he could manage to wake up the drunk lineman.

Suddenly there was a huge roar. The compounder thought he was hit on head by the drunk man. The drunk man thought he was dreaming. The roar continued and appeared to be approaching near. The compounder turned behind to see a huge wall of water approaching and he froze. It was now the turn of the drunk man to turn back and see his house being engulfed in water along with everybody else's. For a fraction of second he thought he saw a couple of souls trying to run away from water and failing to do so. He shook the frozen compounder by the shoulder and both of them started running frantically towards the dispensary. When they looked back the next time, it appeared that they had landed on a new island which seemed to have suddenly risen above the sea waters. There was no sight of the till now existing civilization.

The news of Kanata's destruction reached Shivpur after four days. By that time, every one had already assumed that not a single soul would have survived there. There was mourning at Raghu's house and people were already discussing who should take up the job that will be offered on compassionate grounds. Some rooted for his mother taking up the work, others supported Raghu. But everyone was generally relieved that the family could finally get rid of the drunkard. It was a scene of mixed emotions.

Soon it was first January. Unlike previous years, it was a day of despair and mourning. The ten o'clock bus brought an unbelievable piece of news. An engineer, a compounder, a carpenter and a lineman from Shivpur were the only four survivors on the Kanata Island. The crowd started towards Raghu's house with mixed emotions once again. In his mother's own words, 'the Almighty had kept me on slow poison, then he paused only to resume with a higher dose.'

Friday, March 11, 2011

Mahabharata Live

History: The original version of the Tale of Mahabharata presents a least distorted account of human psychology in a very novel style. It had exposed bare emotions when it was not the norm. It is still not a norm, but that is another thing. A dozen doctorate degrees would not honor its creator enough. It continues to intrigue me as I see its chapters unfolding all the times, all around.

Mahabharata Live!

As a teacher publishes a pupil's thesis in his name,
As a reportee bears the brunt of his boss' shame,
As a factory effluents poison the rural resources,
As a man is blinded, misled at bigoted discourses,
As an offical deducts share from a poor's food,
As a hawker is shooed away in a tone very rude,
As facts are veiled to nip competition in bud,
As intellectuals get engrossed in slinging mud...

Compassion is killed, ethics are omitted,
A Drona is created, an Eklavya is cheated,
An Arjun is exalted, a Karn is defeated,
And The tale of Mahabharata is repeated.

Hum Khwab Dikhane Wale Hain

Background: This post has been compiled on the earnest request by a politician for his public address.

Politician Speak:

In a world replete with temptation,
I am still accused of corruption;
Adressed to the one who maligns
And will regret lacking political signs,
My emotions are expressed in these lines!

(Hindi Translation)

सोने के प्याले में मोती मिश्रित मद्य मधुर सा लगता है,
फिर भी लगते आरोंपों का यह वेग न थमते दिखता है;
हमे मलिन करने का मंतर, किसी चतुर का लगता है,
जीवन का परचा पेश करे, यह वीर रस की कविता है,
जिसको पढ़कर सोचोगे, क्यों बने न हम भी नेता हैं!

हम ख्वाब दिखाने वाले हैं

कुछ पगले पूछें, दुनिया से क्या लेकर जाने वाले हैं,
उन्हें बता दें, हम तो सब कुछ यहीं उड़ाने वाले हैं,
जो बच जाये, नौ पुश्तों के नाम कराने वाले हैं,
वो भाव पूछने वाले हैं, हम रूप परखने वाले हैं,
वो ख्वाब देखने वाले हैं, हम ख्वाब दिखाने वाले हैं!

वो सूखी रोटी खाते हैं, अपने पकवान निराले हैं,
वो मीलों पानी को तरसें, अपने मदिरा के प्याले हैं,
उनके पैरों में छाले हैं, हम उड़न खटोलों वाले हैं,
वो कतार में लगते हैं, हम भीड़ जुटाने वाले हैं,
वो ख्वाब देखने वाले हैं, हम ख्वाब दिखाने वाले!

उनके कपड़े साल पुराने, हम गाड़ी रोज़ बदल डाले हैं,
उनका कोई इलाज नहीं, हम प्लास्टिक सर्जरी कराले हैं,
उनका कोई अस्तित्व नहीं, अपने तो बने देवालय हैं,  
वो मंच सजाने वाले हैं, हम रिब्बन काटने वाले है,
वो ख्वाब देखने वाले हैं, हम ख्वाब दिखाने वाले हैं!

उनको दुख-दर्द सताते हैं, हम जीवन का लुत्फ़ उठाते हैं,
वो मर-मर के जी पाते हैं, हम मरे भी अमर हो जाते हैं!

Friday, March 4, 2011

Biwi No 1

What a Dream: Reading newspaper just before going to bed has unusual effects and last night was no different for me. I watched Biwi No 1 on the silverscreen of my dreams with a rather meaningful song.

Biwi No 1













Opposition है, court है, बढ़ता media pressure,
India भूल जाए सब, कुछ ऐसा जादू कर!

                                                             घबराने की क्या बात है, जब हाथ में है दफ्तर,
                                                             Caesar की बीवी होने का, चलाता जा चक्कर!

                                                             CGV में क्या है, दलदल,
                                                             मच्छर भी छाए हैं, हरपल

                                                             2G  की रिश्वत लूं, ले ले,
                                                             ओ मै तो यही चाहती हूँ,

Inflation का आलम, JPC आये है, 
हम दोनों को corruption की बदनामी खाए है, 

                                                             Radia तो इक खच्चर है, और Raja है अजगर!
                                                             Caesar की बीवी होने का, चलाता जा चक्कर!

                                                             तेरी कुर्सी मैं ले लूं, ले ले,
                                                             बाबा को दे दूं, दे दे,

                                                             वादा तो दे जा, दीया,
                                                             थर-थर कापें है जीया|

कलमूहे का इशारा, PM पे आ गया है,
अदालत का फरमान, Thomas भी चला गया है,

                                                            Impeach करा दूं judges को, तू दे दे बस लिखकर! 
                                                            Caesar की बीवी होने का, चलाता जा चक्कर!

Opposition है, court है, बढ़ता media pressure,
India भूल जाए सब, कुछ ऐसा जादू कर!             

                                                           घबराने की क्या बात है, जब हाथ में है दफ्तर,
                                                           Caesar की बीवी होने का, चलाता जा चक्कर!
  


Credits: The caricatures have been drawn by reputed artists and were available online. These have been merely displayed here and might be subject to copyright.